सोने की चिड़िया निगल गया हा! कौन बाज?
जिसका गर्वोन्नत शीश युगों तक था भू पर,
लहराई जिसकी कीर्ति सितारों को छूकर,
जिसके वैभव का गान सृष्टि की लय में था,
जिसकी विभूतियां देख विश्व विस्मय में था,
वह देश वही भारत उसको क्या हुआ आज?
सोने की चिड़िया निगल गया हा! कौन बाज?
जिसके दर्शन की प्यास लिये पश्चिम वाले,
आये गिरि-गह्वर-सिन्धु लाँघ कर मतवाले.
तब कहा गर्व से सपनों का गुलजार इसे,
अब वही मानते सीवर बदबूदार इसे.
कारण क्या? सोचो अरे राष्ट्र के कर्णधार?
संसद से बाहर भी भारत का है प्रसार!
यह देश दीन-दुर्बल मजदूर किसानों का.
भिखमंगों-नंगों का, बहरों का-कानों का.
जब-जब जागा इनमें सुषुप्त जनमत अपार,
आ गया क्रांति का-परिवर्तन का महाज्वार.
ढह गए राज प्रासाद, बहा शोषक समाज.
मिट गयी दानवों की माया आया सुराज.
ये नहीं चाहते तोड़फोड़ या रक्तपात,
ये नहीं चाहते प्रतिहिंसा-प्रतिशोध-घात.
पर तुम ही इनको सदा छेड़ते आये हो.
इनके धीरज के साथ खेलते आये हो.
इनकी हड्डी पर राजभवन की दीवारें,
कब तक जोड़ेंगी और तुम्हारी सरकारें?
रोको भवनों का भार-नींव की गरमाहट,
देती है ज्वालामुखी फूटने की आहट!!!
( हिंदुस्तान दैनिक लखनऊ में प्रकाशित )
-वीरेन्द्र वत्स
लहराई जिसकी कीर्ति सितारों को छूकर,
जिसके वैभव का गान सृष्टि की लय में था,
जिसकी विभूतियां देख विश्व विस्मय में था,
वह देश वही भारत उसको क्या हुआ आज?
सोने की चिड़िया निगल गया हा! कौन बाज?
जिसके दर्शन की प्यास लिये पश्चिम वाले,
आये गिरि-गह्वर-सिन्धु लाँघ कर मतवाले.
तब कहा गर्व से सपनों का गुलजार इसे,
अब वही मानते सीवर बदबूदार इसे.
कारण क्या? सोचो अरे राष्ट्र के कर्णधार?
संसद से बाहर भी भारत का है प्रसार!
यह देश दीन-दुर्बल मजदूर किसानों का.
भिखमंगों-नंगों का, बहरों का-कानों का.
जब-जब जागा इनमें सुषुप्त जनमत अपार,
आ गया क्रांति का-परिवर्तन का महाज्वार.
ढह गए राज प्रासाद, बहा शोषक समाज.
मिट गयी दानवों की माया आया सुराज.
ये नहीं चाहते तोड़फोड़ या रक्तपात,
ये नहीं चाहते प्रतिहिंसा-प्रतिशोध-घात.
पर तुम ही इनको सदा छेड़ते आये हो.
इनके धीरज के साथ खेलते आये हो.
इनकी हड्डी पर राजभवन की दीवारें,
कब तक जोड़ेंगी और तुम्हारी सरकारें?
रोको भवनों का भार-नींव की गरमाहट,
देती है ज्वालामुखी फूटने की आहट!!!
( हिंदुस्तान दैनिक लखनऊ में प्रकाशित )
-वीरेन्द्र वत्स
टिप्पणियाँ
agar hosake to isme thoda veer raas daale aap ya ese hi koi aur par isse badi likhe is padhne me bohot mazaa aaya........
जिसके दर्शन की प्यास लिये पश्चिम वाले,
आये गिरि-गह्वर-सिन्धु लाँघ कर मतवाले.
Bahut he acchi line lagi...