लबों पर गालियाँ

सभा में तालियाँ हैं और हम हैं
लबों पर गालियाँ हैं और हम हैं

वही सपने दिखाते आ रहे हैं साठ सालों से
सियासी थालियाँ हैं और हम हैं

उन्हें है धर्म से मतलब, उन्हें है जाति की चिन्ता
दरकती डालियाँ हैं और हम हैं ...

कहीं डाका, कहीं दंगा, कहीं आतंक का साया
लहू की नालियाँ हैं और हम हैं
वीरेन्द्र वत्स

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